क्या है जन्मकुंडली ?

अंतरिक्ष में किसी विशेष क्षण में कुंडली आकाशीय पिंडों और ग्रहों का एक स्नैपशाट है। जन्म कुंडली या होरोस्काप के रूप में लोकप्रिय रूप से जाना जाने वाला एक ज्योतिषीय चार्ट है, जो जन्मदिन, जन्मस्थान और जन्म समय के आधार पर बना है।

यह चार्ट विभिन्न लक्षण, ग्रह, सूर्य और चंद्रमा के स्थान को बताता है और निर्धारित करता है। जन्म कुंडली में ज्योतिषीय पहलुओं और नवजात शिशु की महत्वपूर्ण जानकारी का भी पता चलता है। कुंडली बनाना एक ज्योतिषी का व्यवसाय है और जन्म कुंडली तैयार करना कोई आसान काम नहीं है। एक ज्योतिषी जन्म के बढ़ते और चढ़ाई की स्थिति की गणना करने के लिए स्थानीय समय और जन्म स्थान के माध्यम से कुंडली को निर्धारित करता है। जन्म कुंडली एक व्यक्ति के व्यक्तित्व, वर्तमान और भविष्य की जानकारी प्रदान करती है। कुंडली के माध्यम से एक व्यक्ति आसानी से अच्छे समय और बुरे समय को जान सकता है और उस तरह से कार्य कर सकता है।

Lord Ganesha

कुंडलि बनाने का कार्य कैसे होता है

जन्म कुंडली चार्ट को अलग-अलग संकेतों और ग्रहों से मिलाकर 12 घरों में विभाजित किया गया है। चार्ट पर, पहला घर अग्रवर्ती से शुरू होता है और बाकी घर घड़ी की विपरीत दिशा में गिने जाते हैं। ये घर किसी व्यक्ति की स्थिति और ज्योतिष संबंधी पहलुओं को परिभाषित करते हैं। कुंडली में हर घर जीवन की एक अलग संभावना का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कैरियर, रिश्ते, पैसा और अन्य अधिक समान पहलु ।

इसके अलावा, ग्रह ग्रहों की स्थिति के आधार पर दिन, महीना और वर्ष के रूप में विभिन्न राशियों में स्थानांतरित होते रहते हैं। ये ग्रह विभिन्न घटनाओं और संभावनाओं को दर्शाते हैं। जन्म कुंडली को देखते हुए, एक ज्योतिषी ग्रहों के दृश्य के आधार पर भविष्य की भविष्यवाणी कर सकता है। भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करने के लिए ज्योतिषियों द्वारा विभिन्न सिद्धांतों का परीक्षण और वैदिक ज्योतिष का अभ्यास किया जाता है।



कुंडली कैसे उपयोगी है

कुंडली बनाना एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जन्म कुंडली को नेटल चार्ट या जन्मपत्री के नाम से भी जाना जाता है जो एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कुंडली केवल पेशेवरों द्वारा ही बनाई जानी चाहिए क्योंकि वे आपके भविष्य और विशेषता/लक्षणों को महान सटीकता के साथ बता सकते हैं। एक कुंडली एक व्यक्ति को पर्याप्त लाभ प्रदान कर सकती है, जैसे:

  • अपनी कुंडली की सहायता से, आप आसानी से अपने भविष्य की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
  • आपकी कुंडली के अनुसार, आप सबसे उपयुक्त कैरियर विकल्प का अनुमान कर सकते हैं। यह आपके व्यक्तित्व लक्षण और संकेतों पर निर्भर करता है।
  • कुंडली आपको अपने व्यक्तित्व लक्षण, रिश्ते, कैरियर, वित्त और जीवन के अन्य पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी दे सकती है।
  • कुंडली की मदद से आप अपने भाग्यशाली रत्न, भाग्यशाली रंग और भाग्यशाली संख्या का अनुमान लगा सकते हैं।
  • आप अपने भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, समस्याओं की गहराई को कम करने के लिए उपाय और समाधान भी पा सकते हैं।
  • कुंडली जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल समय की जानकारी भी प्रदान करती है।

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग उत्तराखंड

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर देवप्रयाग उत्तराखंड में दो दिवसीय राष्ट्रीय वेद संगोष्ठी का सम्पूर्ति सत्र 25 मार्च 2023 को आयोजित किया गया। उक्त सत्र का मुख्य विषय षोडशसंस्कारों का महत्व एवं प्रासंगिकता था। केन्द्रीयसंस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग के माननीय निदेशक प्रोफेसर पी.वी.बी. सुब्रह्मण्यम् जी के निर्देशन तथा वेद के सुप्रसिद्ध विद्वान वेदविभागाध्यक्ष डॉ शैलेंद्र प्रसाद उनियाल जी के संयोजन में षोडश संस्कारों के महत्व एवं प्रासंगिकता पर संगोष्ठी आयोजित की गई। उक्त सम्पूर्ति सत्र में मुख्य अतिथि प्रोफेसर बनमाली विश्वाल- शैक्षणिक निर्देशक केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली, सारस्वत अतिथि प्रोफेसर राजेश्वर प्रसाद मिश्र पूर्वअधिष्ठाता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, सम्मानित अतिथि श्री बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी आचार्य भुवन चंद्र उनियाल जी तथा विशिष्ट अतिथि राज ज्योतिषी सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी श्री सिद्धिदात्री पंचांग के संपादक पंडित विनोद बिजल्वाण ने उक्त विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।

श्री सिद्धिदात्री पंचांग के संपादक पंडित विनोद बिजल्वाण का उक्त विषय पर व्याख्यान-

माननीय प्रोफेसर विश्वाल साहब , प्रोफेसर मिश्र साहब, निर्देशक प्रोफेसर सुब्रमण्यम साहब, पूर्व धर्माधिकारी श्री बदरीनाथ धाम आचार्य उनियाल साहब एवं इस कार्यक्रम के संयोजक वेद के प्रकांड विद्वान डॉ उनियाल साहब- आप सभी को सादर प्रणाम। यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि निर्देशक प्रोफेसर सुब्रमण्यम साहब एवं डॉक्टर उनियाल साहब के संयोजन में षोडश संस्कारों के महत्व एवं प्रासंगिकता के विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई है। यद्यपि मेरा विषय कर्मकांड नहीं रहा है किंतु कभी-कभी किसी बिंदु पर उसके महत्व पर और उसकी प्रासंगिकता पर विचार करता हूं। मेरा ध्यान नामकरण संस्कार के अवसर पर शुद्धि हेतु पंचगव्य के पान करवाने पर गया है । गोमूत्र - गोबर - गाय का दूध - दही - घी - इन 5 द्रव्यों से ही पंचगव्य क्यों बनाया जाता है। यद्यपि शास्त्र में इसके दैविक कारण दर्शाए गए है । (जैसे कि गायत्र्या गृृह्य गोमूत्रं) किंतु मुझे अनायास ही पंचगव्य में मिलाए जाने वाले इन 5 द्रब्यों में से दो - तीन के बड़े महत्व का ज्ञान हुआ । आज से लगभग 10 वर्ष पूर्व एक सज्जन जोकि बेकरी का कार्य करते थे ,उनकी बेकरी की फैक्ट्री थी। मेरे कार्यालय में बैठकर चर्चा में उन्होंने बताया कि उन्हें पहले ह्रदय का बहुत गंभीर रोग हो गया था । वह तीन - चार कदम भी नहीं चल पाते थे और उनका सांस फूल जाता था । तो उन्हें गुजरात के एक वैद्य जी ने बताया कि वह गोमूत्र का सेवन करें ।उन्होंने कुछ दिन गोमूत्र का सेवन किया और उनका वह रोग समाप्त हो गया । मैंने उसी दिन कार्यालय से शाम को घर जाते हुए औषधि की दुकान से एक गोमूत्र की बोतल खरीद ली। जबकि मुझे कोई ह्रदय रोग नहीं था और मैं नित्य एक ढक्कन गोमूत्र एक गिलास पानी में मिलाकर प्रातः जल के साथ सेवन करता रहा और मैंने वह बोतल समाप्त कर दी । जिस अवधि में मैं गोमूत्र का सेवन कर रहा था और शायद 10 - 15 दिन ही हुए थे कि मेरा ध्यान अचानक एक बात पर गया कि मेरी नस चढ़ना बंद हो गया क्योंकि जब मैं पूजा में एक डेड घंटा बैठता था तो अचानक मुझे खड़ा उठना पड़ता था क्योंकि मेरे पांव की नस चढ जाया करती थी । तथा दो-तीन बार रात को सोते हुए नींद में ही नस चढी तो मुझे एकदम उठना पड़ता था। गोमूत्र के सेवन से मेरा नस चढना बंद हो गया । जिन सज्जन ने मुझे गोमूत्र बताया था। अभी 1 साल भर पहले वह कहने लगे मुझे हॉर्ट में तकलीफ हो रही है मैंने कहा कि आपने तो मुझे बताया था आप ही क्यों नहीं गोमूत्र लेते तो कहने लगे अच्छा हुआ आपने बता दिया मैं तो भूल ही गया था। मेरा ध्यान इस तथ्य की और जा रहा है कि जो पंचगव्य हम बनाकर सेवन करते हैं और शुद्धि के लिए लेते हैं यह अत्यंत प्रभावी औषधि के गुण लिया लिए हुए होता है। पुनः पंचगव्य में मिलने वाली दही पर विचार करें। दही खट्टी नहीं होनी चाहिए । यदि व्यक्ति दही पिए तो उसके उदर के कई रोगों का शमन होता है यह भी अनुभूत किया हुआ है। पुनः दूध पर ध्यान दें यह करीबन 15 दिन पूर्व की घटना है एक कन्या जिसकी की आयु 24 वर्ष है तथा राजकीय विद्यालय में शिक्षक है। उसे आंत में अल्सर कोलाइटिस हो गया। वह गत 5 मास से चिकित्सा करवा रही थी और उसकी स्थिति दिन प्रतिदिन गंभीर हो रही थी । उसे दिन में चार - पांच बार शौच जाना पड़ता था तथा शौच में रक्त आरहा था । जिससे वह अत्यंत कृृशकाय हो गई थी और नौकरी छोड़ने को तैयार थी। मैंने उसे बासी दूध वे ईसबगोल की भूसी डालकर पीने को कहा। आप सुन कर आश्चर्यचकित होंगे कि उसको 24 घंटे में ही अद्भुत लाभ हो गया और मैंने उसे सलाह दी की कुछ दिन इसी प्रकार ईसबगोल लें। इस प्रकार मैं आपको पंचगव्य के तीन घटकों के ही बारे में अनुभव बता रहा हूं। मेरा विचार है कि यदि पंचगव्य पर गंभीर शोध हो तो यह आश्चर्यचकित करने वाले शोध के परिणाम देगा । हमारे पूर्व शास्त्रकारों ने जितनी भी बातें लिखी हैं वह अत्यंत गहरी एवं उनकी कठोर तपस्या का ही परिणाम है। दुर्भाग्य से हम उनके मूल प्रभाव से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं । आयुर्वेद के ग्रंथ माधवनिदान में गोमूत्र से गृधसीवात जिसे की सियाटीका का रोग कहते हैं का उपचार गोमूत्र से होना बताया गया है । गाय के घी में कितनी अद्भुत क्षमता है। इसका भी एक अनुभूत प्रयोग मैंने अनुभव किया है । कुछ वर्ष पूर्व मेरे को स्कूटर ने टक्कर मार दी थी जिससे मेरे दाएं हाथ की कोनी की हड्डी टूट गई और मेरे को अत्यंत पीड़ा रहने लगी मैं रात को सो नहीं पाता था। एक दिन अनायास ही मैंने जहां चोट लगी थी वहां गाय का घी लगा दिया और आश्चर्य की, मैं आराम सो गया। इसी प्रकार दूसरे दिन भी घी लगाया तो फिर सो गया। तीसरे दिन मैंने घी लगाकर यह देखा कि कितने देर में मेरे हाथ का दर्द ठीक हो रहा है तो पता लगा कि 6 मिनट में मेरे हाथ का दर्द ठीक हो जाता था। मेरे एक परिचित जोकि ज्योतिषाचार्य , व्याकरणाचार्य ,M.A. संस्कृत हैं तथा राजकीय इंटर कॉलेज में संस्कृत के प्रवक्ता हैं उनकी दुर्घटना में चार जगह से हड्डी टूटी जिससे उनके चार ऑपरेशन भी हुए और उनको बहुत दर्द रहने लगा उन्हें भी मैंने गाय का घी लगाने की सलाह दी तो हमारे बैठे-बैठे उनको उसमें आराम नजर आने लगा किंतु चिकित्सक ने उनको गाय का घी लगाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उनका उसी अवधि में ऑपरेशन हुआ था । मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि पंचगव्य में मिलने वाली इन 4 चीजों के औषधीय गुणों के बारे में मैंने बताया है जो कि अनुभूत हैं। पांचवा गोबर है (गंंन्धद्वारेति गोमयम ) गोबर निश्चित रूप से अत्यंत लाभकारी है। यह शोध का विषय है इसलिए हमारे जो षोडश संस्कार हैं इनमें गहरा ज्ञान छुपा हुआ है हमारे यहां पंडित वर्ग मात्र पूजा-पाठ या ज्योतिष का कार्य ही नहीं करते थे बल्कि उन्हें बहुत व्यावहारिक ज्ञान भी होता था जिससे समाज का कल्याण होता था मैंने ज्योतिष का कार्य करते हुए कई लोगों को अपने अनुभव से लाभ पहुंचाया है । मैंने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का गहन अध्ययन किया था । बवासीर रोग जिसेकि पाइल्स कहते हैं । उसके मैंने 50 से अधिक लोगों को ठीक किया है तथा फिस्टुला जो कि बिना ऑपरेशन के ठीक नहीं होता वह भी ठीक हुआ जिससे एक व्यक्ति ने मेरे बारे में अखबार में निकाला कि इन्हें होम्योपैथिक औषधियों का बहुत ज्ञान है। पंडित वर्ग को चाहिए कि वह षोडश संस्कारों में छुपे गहरे ज्ञान को प्रकाश में लाने का प्रयास करें तो लोगों को ज्यादा लाभ होगा। अंत में अपने शब्दों को विराम देने से पूर्व सभी उपस्थित विद्वानों को पुनः सादर प्रणाम ।

पंडित विनोद बिजलवान के व्याख्यान पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयके उद्गार

राजज्योतिर्विद् पंडित विनोद बिजलवान जी के द्वारा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर के वेद पौरोहित्य एवं कर्मकांड विद्या शाखा द्वारा समायोजित द्वि दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संपूर्त्तिसत्र में आपके अनुभूत ज्ञान एवं व्याख्यान से हम अत्यंत उपकृत हुए सधन्यवाद, साभार नमस्कार।🕉️🌹🌷🌻🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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