जन्मपत्रिका मिलान

कुंडली मिलान में अश्लेषा आदि नक्षत्रों का दोष

प्रायः देखा गया है कि यदि कन्या या लड़के की कुंडली में विशाखा अश्लेषा आदि अशुभ नक्षत्र है तो कुंडली मिलान में बाधा उत्पन्न हो जाती है । अधिकांश मिलान कर्ता सूक्ष्म विचार नहीं करते जबकि शास्त्र में इसका सूक्ष्म विचार कहा गया है । शास्त्र में कहा गया है कि दुष्ट नक्षत्रों में उत्पत्ति का दोष केवल कन्या के लिए ही विशेषतया विचारणीय है । वर कन्या की कुंडली में ससुर का विचार चतुर्थ भाव से तथा सास का विचार दशम भाव से तथा देवर जेठ साले का विचार नवम भाव से किया जाता है । यदि उपरोक्त भाव के स्वामी बलवान- मित्र के घर में -स्वामी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो मूल - अश्लेषा - विशाखा आदि नक्षत्रों का दोष नहीं होता है । “मूल सर्पोद् भवं दौष्टय्ं न स्यान मित्रादयो ग्रहाः उक्त स्थान स्थिता सौम्य दृष्टा च बलिनो यदि “।।

अश्लेषा नक्षत्र वाली मिथुन लग्न की कुंडली में दशम भाव जो की सास का होता है उसका अधिपति गुरु चतुर्थ भाव में बैठकर अपने घर दशम भाव को देख रहा है गुरु शुभ ग्रह है तथा अपने घर को देख रहा है अतः दशम भाव अपने स्वामी से दृष्ट होने से शुभ फल कारक है । अतः अश्लेषा नक्षत्र हानि प्रद नहीं है । इसी प्रकार विशाखा नक्षत्र वाली कन्या लग्न की कुंडली में नवम भाव का अधिपति शुक्र अपने घर नवम भाव में स्थित है अतः नवम भाव बलिष्ठ होने से देवर जेठ या साले के लिए शुभ है अतः विशाखा नक्षत्र हानि प्रद नहीं है । इस प्रकार अशुभ नक्षत्रों का सूक्ष्म विचार कर ही निर्णय किया जाना चाहिए यही शास्त्र सम्मत है । विश्वास है विद्वान ज्योतिषी इसी प्रकार शास्त्र सम्मत निर्णय करेंगे ।

कुंडली मिलाना क्या है?

कुंडली मिलाने (Kundli Milan) की प्रणाली बहुत विस्तृत है, इसकी दो मुख्य विशेषताएं हैं। पहली ग्रहों को मिलाना है, और दूसरी गुण मिलाना जो कि अन्य विशिष्ट पहलुओं के मिलाने के रूप में देखी जा सकती है। गुण मिलाना भारत में बहुत लोकप्रिय है, और इसका एकमात्र उद्देश्य शादी और अनुकूलता के प्रयोजन से सबसे अच्छी कुंडली को मिलाना है। गुण मिलाने की प्रणाली वैदिक काल से भारत में अपनाई जाती है, और आज भी इसे दो कुंडली के बीच संगतता को पहचानने हेतू सबसे अच्छा साधन माना जाता है। इस व्यवस्था का समाज में इस प्रकार प्रचलन है, कि प्रेम विवाह के मामले में भी परिवार कुंडली मे गुण मिलाने पर जोर देते हैं। गुण मिलाने के लिये अधिकतर ज्योतिष और पंडित एक प्रणाली का अनुसरण करते हैं, जिसके द्वारा एक व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के सभी पहलुओ के बारे मे जानकारी प्राप्त के जाती है|

इसमे सामान्य अनुकूलता, व्यवहार, यौन संगतता, संतान आदि को शामिल किया गया है। गुण और ग्रह मिलान कुंडली मिलाने की एक पूरी प्रक्रिया है, और इसके अलावा शादी के लिए, और कुछ भी जरूरत नहीं है।गुण मिलाना जन्म नक्षत्र पर आधारित है, इसलिए कुंडली का गुण मिलान, ग्रह मिलान (ग्रहों का मिलान) के साथ, खुश वैवाहिक संबंध को सुनिश्चित करता है।

Lord Ganesha

गुण मिलाना क्या है?

उन लोगों के लिए जो नए हैं और गुण मिलाने की प्रणाली से परिचित नहीं हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूँ, कि गुण मिलाने की प्रणाली दोनों कि कुंडली की 8 पहलुओं को मिलाने पर आधारित है। ये वार्ना, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गण, भकूट और नाड़ी हैं। ये सभी 8 कूटें 1 से 8 अंक या गुणों को दर्शाते हैं, जो कि कुल 36 गुण बनाते है। अंतिम स्कोर के लिये, इन 8 कूटों में से, हर एक को मिलना होता है| भाकूत और नाड़ी दोष जो कि क्रमशः 7 और 8 अंक हैं, सबसे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भाकूत एक आनंदमय जीवन व्यतीत करने हेतू दो कुंडली के बीच की संगतता को दर्शाता है। जबकि नाड़ी, संतान से संबंधित है, और दोनों में से कोई एक भी दोष हो तो वैवाहिक सुखों को खराब कर सकता है। एक अच्छी शादी के लिए न्यूनतम 18 गुण अंक होने चाहिए | अगर अंक 18 से कम है, तो मिलान को नकारा जा सकता है, क्योंकि संगतता 50% से कम होगा।किसी कारण वश अगर भकूत या नाड़ी दोष है, या फिर दोनों है, तो शादी के बंधन को नकारना पड़ेगा, क्योंकि इस प्रकार कि शादी में मुसीबत और जुदाई की संभावना अधिक हो जाती है।


 
क्रमांक लड़का और लड़की की कुंडली में मिले गुणों की संख्या शादी होने पर भावी परिणाम
1. 18 अथवा इससे कम गुण मिलने पर इस स्थिति में शादी होने पर इसके असफल होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.
2. 18 – 24 गुण मिलने पर इस स्थिति में हुई शादी सफल तो हो सकती हैं, परन्तु इसमें कई समस्याएँ आ सकती हैं.
3. 25 – 32 गुण मिलने पर इस प्रकार से कुंडलियों के मिलने से सफल वैवाहिक जीवन के संकेत प्राप्त होते हैं.
4. 32 – 36 गुण मिलने पर शादी के लिए सर्वोत्तम साथी. इस प्रकार की शादियों में समस्याएं उत्पन्न ही नहीं होती, और अगर हो भी तो वे रिश्ते पर बुरा प्रभाव नहीं डालती.

[परन्तु स्थानीय मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता की कुंडलियों के भी पूरे 36 गुण मिले थे, उनका जीवन कष्टों में बिता, अतः कुछ लोग पूरे 36 गुण मिलने की स्थिति को शुभ नहीं मानते.]

नवीन वर वधू के गुण मिलान की सारणी हमारे द्वारा संपादित एवं प्रकाशित संवत् 2078 के श्री सिद्धिदात्री पंचांग में दी है । वर वधु के गुण मिलान की इस नवीन सारणी की विशेषता है कि इसमें शास्त्र के अनुसार जिन दोषों का परिहार हो गया है उनको समाहित कर उनके गुण संख्या युक्त कर लिखी गई है तथा अधिकांश मामलों में शास्त्र के अनुसार गुणों का मिलान हो जाता है । इस सारणी में नवांश मैत्री तथा नाड़ी दोष का परिहार भी समाहित किया गया है । कॉपीराइट एक्ट एवं ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन के अंतर्गत इस सारणी के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।इस प्रकार की सारणी अभी तक किसी पंचांग में प्रकाशित नहीं हुई है।

गुणों के मिलान की सूक्ष्म सारणी

शास्त्र में लिखा है कि यदि लड़के एवं लड़की की राशियों में परस्पर मित्रता हो तो वर्ण दोष, गण दोष ,योनि दोष ,तारा दोष एवं भकूट दोष तीनों प्रकार के भकूट दोष द्द्द्ववी-द्वादश नव-पंचम एवं षडाष्टक दोषों का नाश हो जाता है । यदि राशि मैत्री ना हो किंतु राशि नवांश के अधिपतिओं की मित्रता हो तो भी उपरोक्त दोष समाप्त हो जाते हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि गुणों की संख्या उपरोक्त दोषों के कारण अल्प है तो राशियों की मित्रता या राशि के नवांश पतियों की मित्रता से जो दोष दूर हो जाते हैं उनके गुणों को भी युक्त करना चाहिए। यदि राशियों में मित्रता नहीं है तथा भकूट दोष नहीं है तो राशि मैत्री का दोष समाप्त हो जाता है । चाहे दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो वह भी मित्रता की श्रेणी में ही लिया जाता है । यदि दोनों की राशियों का अधिपति बुध गुरु या शुक्र में से कोई एक ग्रह हो तो नाड़ी दोष नहीं होता है । उदाहरण के लिए एक की राशि धनु है तथा दूसरे की मीन राशि है तो दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह बृहस्पति होने से नाड़ी दोष नहीं होता है । इसी प्रकार यदि नाड़ी दोष है और चरणों का वेध नही है तो अल्प दोष होता है। एक का पहला चरण हो दूसरे का चौथा चरण या एक का दूसरा चरण और दूसरे का तीसरा चरण हो तो इन चरणों का परस्पर वेध होता है। उस स्थिति में नाड़ी दोष में विवाह नहीं करना चाहिए ।विशेषकर के मध्य नाड़ी में विवाह नहीं करना चाहिए ।यदि अत्यंत आवश्यकता हो तो चरणों के वेध से परिहार तथा महामृत्युंजय जप आदि के द्वारा शांति कर स्वर्ण नाड़ी का पूजन कर ही विवाह संपन्न करना चाहिए । यदि लड़के और लड़की कि एक ही राशि हो एवं एक ही नक्षत्र हो तो चरण अलग-अलग होने पर विवाह शुभ होता है ।

संवत 2078 सन 2021-22 के श्री सिद्धिदात्री पंचांग में गुणों के मिलान की सूक्ष्म सारणी दी गई है जिसमें की वर वधू के गुण मिलान के 11,000 कोष्टक दिए गए हैं । कुंडली मिलान में अश्लेषा आदि नक्षत्रों का दोष प्रायः देखा गया है कि यदि कन्या या लड़के की कुंडली में विशाखा अश्लेषा आदि अशुभ नक्षत्र है तो कुंडली मिलान में बाधा उत्पन्न हो जाती है । अधिकांश मिलान कर्ता सूक्ष्म विचार नहीं करते जबकि शास्त्र में इसका सूक्ष्म विचार कहा गया है । शास्त्र में कहा गया है कि दुष्ट नक्षत्रों में उत्पत्ति का दोष केवल कन्या के लिए ही विशेषतया विचारणीय है । वर कन्या की कुंडली में ससुर का विचार चतुर्थ भाव से तथा सास का विचार दशम भाव से तथा देवर जेठ साले का विचार नवम भाव से किया जाता है । यदि उपरोक्त भाव के स्वामी बलवान- मित्र के घर में -स्वामी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो मूल – अश्लेषा – विशाखा आदि नक्षत्रों का दोष नहीं होता है । “मूल सर्पोद् भवं दौष्टय्ं न स्यान मित्रादयो ग्रहाःउक्त स्थान स्थिता सौम्य दृष्टा च बलिनो यदि”।।अश्लेषा नक्षत्र वाली मिथुन लग्न की कुंडली में दशम भाव जो की सास का होता है उसका अधिपति गुरु चतुर्थ भाव में बैठकर अपने घर दशम भाव को देख रहा है गुरु शुभ ग्रह है तथा अपने घर को देख रहा है अतः दशम भाव अपने स्वामी से दृष्ट होने से शुभ फल कारक है । अतः अश्लेषा नक्षत्र हानि प्रद नहीं है । इसी प्रकार विशाखा नक्षत्र वाली कन्या लग्न की कुंडली में नवम भाव का अधिपति शुक्र अपने घर नवम भाव में स्थित है अतः नवम भाव बलिष्ठ होने से देवर जेठ या साले के लिए शुभ है अतः विशाखा नक्षत्र हानि प्रद नहीं है । इस प्रकार अशुभ नक्षत्रों का सूक्ष्म विचार कर ही निर्णय किया जाना चाहिए यही शास्त्र सम्मत है । विश्वास है विद्वान ज्योतिषी इसी प्रकार शास्त्र सम्मत निर्णय करेंगे । गुण मिलान की नवीन सारणी वर वधु के गुण मिलान की इस नवीन सारणी की विशेषता है कि इसमें शास्त्र के अनुसार जिन दोषों का परिहार हो गया है उनको समाहित कर उनके गुण संख्या युक्त कर लिखी गई है तथा अधिकांश मामलों में शास्त्र के अनुसार गुणों का मिलान हो जाता है । इस सारणी में नवांश मैत्री तथा नाड़ी दोष का परिहार भी समाहित किया गया है । कॉपीराइट एक्ट एवं ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन के अंतर्गत इस सारणी के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।इस प्रकार की सारणी अभी तक किसी पंचांग में प्रकाशित नहीं हुई है। गुणों के मिलान की सूक्ष्म सारणी शास्त्र में लिखा है कि यदि लड़के एवं लड़की की राशियों में परस्पर मित्रता हो तो वर्ण दोष, गण दोष ,योनि दोष ,तारा दोष एवं भकूट दोष तीनों प्रकार के भकूट दोष द्द्द्ववी-द्वादश नव-पंचम एवं षडाष्टक दोषों का नाश हो जाता है । यदि राशि मैत्री ना हो किंतु राशि नवांश के अधिपतिओं की मित्रता हो तो भी उपरोक्त दोष समाप्त हो जाते हैं । इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि गुणों की संख्या उपरोक्त दोषों के कारण अल्प है तो राशियों की मित्रता या राशि के नवांश पतियों की मित्रता से जो दोष दूर हो जाते हैं उनके गुणों को भी युक्त करना चाहिए। यदि राशियों में मित्रता नहीं है तथा भकूट दोष नहीं है तो राशि मैत्री का दोष समाप्त हो जाता है । चाहे दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो तो वह भी मित्रता की श्रेणी में ही लिया जाता है । यदि दोनों की राशियों का अधिपति बुध गुरु या शुक्र में से कोई एक ग्रह हो तो नाड़ी दोष नहीं होता है । उदाहरण के लिए एक की राशि धनु है तथा दूसरे की मीन राशि है तो दोनों की राशियों का स्वामी एक ही ग्रह बृहस्पति होने से नाड़ी दोष नहीं होता है । इसी प्रकार यदि नाड़ी दोष है और चरणों का वेध नही है तो अल्प दोष होता है। एक का पहला चरण हो दूसरे का चौथा चरण या एक का दूसरा चरण और दूसरे का तीसरा चरण हो तो इन चरणों का परस्पर वेध होता है। उस स्थिति में नाड़ी दोष में विवाह नहीं करना चाहिए ।विशेषकर के मध्य नाड़ी में विवाह नहीं करना चाहिए ।यदि अत्यंत आवश्यकता हो तो चरणों के वेध से परिहार तथा महामृत्युंजय जप आदि के द्वारा शांति कर स्वर्ण नाड़ी का पूजन कर ही विवाह संपन्न करना चाहिए । यदि लड़के और लड़की कि एक ही राशि हो एवं एक ही नक्षत्र हो तो चरण अलग-अलग होने पर विवाह शुभ होता है । संवत 2078 सन 2021-22 के श्री सिद्धिदात्री पंचांग में गुणों के मिलान की सूक्ष्म सारणी दी गई है जिसमें की वर वधू के गुण मिलान के 11,000 कोष्टक दिए गए हैं । नवीन संशोधित वर वधू गुण मिलान की विस्तृत सारणी- गत वर्ष संवत् 2078 सन् 2021-22 एवं संवत् 2079 सन् 2022-23 के श्री सिद्धिदात्री पंचांग में हमने गुण मिलान की नवीन सारणी उदाहरण सहित दी थी । गुण मिलान की विस्तृत सारणी दी जा रही है इसमें नक्षत्र के चारों चरणों को शास्त्रोक्त सपरिहार दर्शाया गया है । न वर्ग वर्णों न गणो न योनि द्विर्द्वादशे चैव षडष्टके वा।तारा विरूद्धे नवपचंमे वा मैत्री यदा स्याच्छुभदोविवाह ।। अतः यदि लड़के एवं लड़की की राशियों में परस्पर मित्रता हो तो वर्ण दोष, गण दोष , योनि दोष, तारा दोष, भकूट दोष (द्विर्द्वादश, नवपंचम् , षडाष्टक,) इन दोषों का नाश हो जाता है एवं विवाह शुभ होता है । मैत्र्यांराशिस्वमीनोरंशनाथ द्वन्द्वस्यापिस्याद्वणानां न दोषः। खेटारित्वं नाशयेत्सद्भकूटं खेटप्रीतिश्चापिदुष्टं भकूटम्। राशि नवांश मैत्री से गण दोष नहीं होता है तथा सद्भकूट (शुभ राशिकूट-तृतीय एकादशादि) होने से ग्रहों की शत्रुता का दोष नहीं होता। प्रोक्ते दुष्ट भकूट के परिणयत्स्वेकाधिपत्ये शुभोअथो राशीश्वरसौह्देपि गदितो नाडयृक्षशुद्धिर्यदि। अन्यर्क्षेंशपयोर्बलित्वसखिते नाडयृक्षशुद्धौ तथा ताराशुद्धिवशेन राशिवशताभावे निरुक्तोबुधैः।।राशियों की या राशि नवांशों की मित्रता या एकाधिपत्य (दोनो की राशियों या राशि नवांशों का अधिपति एक ही ग्रह हो ) या राशिवश्यता हो या ताराशुद्धि में से एक भी होने पर भकूट दोष नहीं होता किन्तु नाड़ी शुद्ध होनी चाहिये। वर्ण परिहार – हीन वर्णों यदा राशी राशीशो वर्ण उत्तमः। तदा राशीश्वरो ग्राह्यस्तद्राशिं नैव चिन्तयेत्।। यदि वर की राशि का वर्ण कन्या की राशि के वर्ण से हीन हो किन्तु राशि के स्वामी का वर्ण उत्तम हो तो परिहार हो जाता है वर्ण दोष दूर हो जाता है। वश्यता होने पर योनि दोष का परिहार हो जाता है – योनेरभावे नोद्वाहः स तु कार्यो वियोगदः। राशिवश्यं च यद्दस्ति कारयेन्न तु दोषभाक।। सद्भकूटं योनि शुद्धि ग्रह सख्यं गुणात्रयम्। एश्वेकतम सद्भावे नारी रक्षोगणा शुभा।। शुभकूट, योनि शुद्धि, ग्रहमैत्री में से एक भी शुभ हो तो गण दोष कन्या के राक्षस गण का दोष नहीं होता है। ‘‘सति सद्राशिकूटेपि योनिवैरं न दोषकृत्’’।। ‘‘स्वभावमैत्री सखिता स्वपत्योर्वशित्वमन्योन्य भयोनिशुद्धिः। परस्परः पूर्वगमे गवेष्यो हस्तो त्रिवर्गी युगपद्युतिष्चेत्।।’’ एवं यदि वर-वधू दोनों की राशियों का अधिपति बुध, वृहस्पति या शुक्र में से कोई एक ही ग्रह हो तो नाड़ी दोष नहीं होता है इत्यादि । ‘‘शुक्रः सौम्यो तथा जीव एकराशीश्वरो यदि। नाड़ीदोषो न वक्तव्यः सर्वथा यत्नतो बुधः।।’’ इन सभी प्रकार के परिहार वाक्यों को प्रस्तुत सारिणी में समाहित कर दिया गया है। शास्त्र में यह भी वचन है कि नाड़ी दोष होने पर वर-वधू के नक्षत्रों के प्रथम एवं चतुर्थ तथा द्वितीय एवं तृतीय चरणों का परस्पर वेध होता है तथा यदि वर-वधू के नक्षत्र चरण उपरोक्त नक्षत्र चरणों से भिन्न हों अर्थात् प्रथम-प्रथम, प्रथम-द्वितीय,द्वितीय-द्वितीय,प्रथम-तृतीय,तृतीय-तृतीय, द्वितीय-चतुर्थ, चतुर्थ-चतुर्थ, तृतीय- चतुर्थ हों तो पाद वेध ना होन से नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है। शास्त्र में इस विषयपर लिखा है कि पाद वेध ना होने पर साधारण दोष होता है। ‘‘आद्यांशेन चतुर्थोशं चतुर्थोंशेन चादिमम्। द्वितीयेन तृतीयं तु तृतीयेन द्वितीयकम्। एवं भांशव्य धोयेशां जायते वरकन्ययोः।। तेषां मृत्युर्न संदेहः शेषांंशाः स्वल्पदोषदाः।।’’ कुछ नक्षत्रों में शास्त्रकारों ने नाड़ी दोष नहीं माना है वह नक्षत्र कृत्तिका,रोहिणी,मृगशिर, आर्द्रा,पुष्य, ज्येष्ठा, श्रवण,उत्तराभाद्रपद एवं रेवती हैं।यदि वर-वधू दोनों के नक्षत्र इन नक्षत्रों में हों तो भी नाड़ी दोष नहीं माना गया है। ‘‘रोहिण्यार्द्रामृगेन्द्राग्निपुष्य श्रवणपौष्णभम्। अपहिर्बुध्नयर्क्षमेतेषां नाड़ीदोषो न विद्यते।।’’ इत्यादि शास्त्र वाक्यों का परिहार के सन्दर्भ में इस सारिणी में समावेश किया गया है। नीचे सारिणी में जहां पर नक्षत्र के चारों चरण हैं और नप अर्थात् नाड़ी दोष परिहार कोष्ठक में लिखा है वहां यह देख लेना चाहिये कि वर-वधू के एक नक्षत्र एक राशि होने पर नक्षत्र का चरण भिन्न होना चाहिये। नाड़ी दोष पर लेख 60 वर्षीय श्री पीताम्बर पंचांग में भी दिया गया है। 1.नाड़ी दोष के परिहारः जहां पर नाड़ी दोष का परिहार नहीं है वहां पर शास्त्रोक्त महामृत्युंजय का जप,स्वर्ण नाड़ी का दान एवं गाय दान आदि करके ही विवाह संपन्न कराया जाना चाहिए । शास्त्र में यह भी लिखा है कि नाड़ी दोष केवल ब्राह्मणों के लिए ही है किंतु यह भी लिखा है कि यदि वर वधू ब्राह्मण नहीं है तो आदि नाड़ी एवं अंत्य नाड़ी का दोष नहीं होता है। यदि दोनों की राशियां एक हों तथा नक्षत्र अलग अलग हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है ।यदि दोनों का नक्षत्र एक तथा राशियां भिन्न – भिन्न हो तो राशिश मैत्री दोष एवं नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है तथा यदि दोनों का एक ही नक्षत्र हो तथा नक्षत्र के चरण अलग अलग हो तो नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है । 2.कूट दोषों का परिहारः शास्त्र में परिहार है कि राशिश मैत्री अथवा राशियों के नवांश अधिपतिओं की मैत्री या दोनों की राशियों का स्वामी अथवा राशियों के नवांश अधिपतिओं का स्वामी एक ही ग्रह होने से वर्ण,वश्य,तारा,योनि,गण तथा भकूट दोषों का परिहार हो जाता है अर्थात यह दोष समाप्त हो जाते हैं । 3.योनि,राशिश मैत्री एवं गण दोषों का परिहारः भकूट दोष नहीं होने पर योनि,राशिश मैत्री एवं गण दोषों का परिहार हो जाता है। 4.वर्ण,वश्य,योनि दोषों का परिहारः यदि कन्या के वर्ण से वर का वर्ण उत्तम हो तो वर्ण दोष का परिहार शास्त्रों में कहा गया है एवं यदि वश्य दोष ना हो तो योनि दोष का परिहार हो जाता है एवं यदि योनि दोष ना हो तो वश्य दोष का परिहार हो जाता है। भकूट आदि दोषों के संकेत अक्षर आ = आदिनाड़ी दोष इ = राशिश मैत्री दोष, भकूट दोष म = मध्यनाड़ी दोष अ = अंत्य नाड़ी का दोष भ = भकूट दोष भी= नवम-पंचम भकूट दोष च = राशि मैत्री , गण एवं भकूट दोष ची = गण एवं भकूट दोष ह = वर्ण,वश्य,तारा एवं योनि दोष ही = वश्य,तारा एवं योनि दोष हि = वर्ण दोष एवं तारा दोष हा = वश्य दोष एवं योनि दोष ता = वश्य दोष एवं तारा दोष बी = वर्ण,वश्य एवं योनि दोष बा = वर्ण दोष एवं वश्य दोष बि = वर्ण,वश्य एवं तारा दोष ज = तारा दोष एवं योनि दोष जा = वर्ण,तारा एवं योनि दोष जी = वर्ण दोष एवं योनि दोष त = तारा दोष व = वश्य दोष ब = वर्ण दोष को ए = एक नक्षत्र एक ही चरण दोष परिहार के संकेत अक्षर पात्र दोनों की राशियां एक हो तथा नक्षत्र भिन्न भिन्न या नक्षत्र एक तथा राशियां भिन्न भिन्न है तो ऐसे स्थलों पर दोष का परिहार हो जाता है । आपा=आदिनाड़ी परिहार, मपा=मध्यनाड़ी परिहार अपा=अंत्यनाड़ी परिहार आप= पाद वेध ना होने से आदि नाड़ी परिहार मप= पाद वेध ना होने से मध्य नाड़ी परिहार अप= पाद वेध ना होने से अंत्य नाड़ी परिहार आनी= वर-वधू दोनों की राशियों का स्वामी बुध बृहस्पति शुक्र मे से एक ही ग्रह होने से आदि नाड़ी दोष नहीं है। मनी= वर-वधू दोनों की राशियों का स्वामी बुध बृहस्पति शुक्र मे से एक ही ग्रह होने से मध्य नाड़ी दोष नहीं है । अनी= वर-वधू दोनों की राशियों का स्वामी बुध बृहस्पति शुक्र मे से एक ही ग्रह होने से अंत्य नाड़ी दोष नहीं है । ट = भकूट दोष नहीं होने पर योनि दोष,राशिशमैत्री दोष एवं गण दोष का परिहार हो जाता है । क= वर-वधू दोनों की राशियों में मित्रता है या दोनों की राशियों का अधिपति एक ही ग्रह है तो ऐसे स्थलों पर दोष का परिहार होने के कारण क अक्षर लिखा है। ष= वर-वधू दोनों की राशियों के नवांश के अधिपतियों में मित्रता है या दोनों का नवांश का अधिपति एक ही ग्रह है अतःदोष का परिहार है। भी= नवम पंचम भकूट दोष के परिहार में नवांश में पूर्ण मित्रता होनी चाहिए अर्थात अधिपति परस्पर मित्र मित्र होने चाहिए इसलिए ऐसे स्थलों पर यदि पूर्ण मित्रता नहीं है तो नवम पंचम भकूट दोष होने के कारण भी अक्षर लिखा गया है। षी =दोनों के नवांश अधिपति मित्र-मित्र होने से नवम पंचम भकूट दोष का परिहार

मंगल दोष का विचार

प्रायः देखने में आया है कि मंगली दोष का विचार करते समय कई लोग सुक्ष्म विवेचना नहीं करते है जिससे कि कुंडली मिलान में बाधा उत्पन्न हो जाती है ।शास्त्र में ऐसे अनेक वाक्य हैं जिससे मंगली दोष का निवारण हो जाता है । जो लोग मात्र कंप्यूटर के गुण मिलान सारणी पर विश्वास कर कार्य करते हैं वह अनेक बार कुंडली मिलान में त्रुटि कर जाते हैं । शास्त्र में स्पष्ट लिखा है की यदि शुक्र सखल हो या खलांतर्गत होतो ऐसे लड़के का विवाह मंगली कन्या से ही करना चाहिए जबकि ऐसा लड़का मंगली नहीं होता लेकिन उसका विवाह मंगली कन्या से ही करना चाहिए यह शास्त्र का वचन ही अपने आप में दर्शाता है की लड़का मंगली नहीं है फिर भी उसके लिए लड़की मंगली होनी चाहिए। पुनः यदि मंगल नीच राशि का है या वक्री है या अस्त है या शत्रु के घर बैठा है तो भी मंगली दोष समाप्त हो जाता है। ऐसे लड़के या ऐसी लड़की जिसकी कुंडली में मंगल नीच राशि का शत्रु राशि का या अस्त या वक्री है तो उसका विवाह बिना मंगली वाले से किया जाना चाहिए। पुनः यह भी लिखा है कि यदि मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो भी मंगली दोष समाप्त हो जाता है । यदि मंगल राहु के साथ हैं तो मंगल का प्रभाव समाप्त हो जाता है ।यदि बलवान गुरु या शुक्र लग्न या सप्तम भाव में हैं तो भी मंगली दोष समाप्त हो जाता है । इस प्रकार अनेक वाक्य शास्त्र में उपलब्ध हैंं । प्राय:देखने में आता है कि कंप्यूटर से मिलान होने वाली कुंडलियां मंगल दोष के आधार पर अस्वीकार कर ली जाती हैं जबकि शास्त्र में मंगल दोष का निवारण उपलब्ध होता है। इस प्रकार आंख मूंदकर कंप्यूटर प्रोग्राम पर विश्वास करना बड़ी भूल होती है क्योंकि जो व्यक्ति कंप्यूटर प्रोग्राम बना रहा है उसको ज्योतिष का कितना ज्ञान है यह महत्व रखता है। इसी कारण आज तक भविष्य देखने वाला कोई कंप्यूटर प्रोग्राम जिस पर पूर्ण विश्वास करा जा सके वह उपलब्ध नहीं है। मनुष्य की बुद्धि से बढ़कर कंप्यूटर कभी नहीं हो सकता।

कुंडली मिलाते समय कुछ बातें ध्यान में रखना चाहिए, जो कि अग्र लिखित है । -:

  • कुंडली मिलाने के लिए किसी भी राह चलते ज्योतिषी के पास न जायें, बल्कि उस पंडित को अपनी कुंडली दिखाए, जो वास्तव में इसके बारे में ज्ञान रखता हो.
  • कुंडली में आपका जन्म स्थान, समय, आदि सबकी जानकारी बिल्कुल सही हो.

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